बगला प्रत्यंगिरा कवच - An Overview



प्रस्तुत साधना उन लोगो के लिये वरदान सामान है जो सरकारी नोकरी पाना चाहते है। ... क्युकी तुलसी यक्षिणी को ही राज्य पद यक्षिणी भी कहा जाता है।अर्थात राज्य पद देने वाली।अतः ये साधना राजनीती में भी सफलता देने वाली है। यदि आपकी पदोन्नति नहीं हो रही है तो,भी यह साधना की जा सकती है। या सरकारी नोकरी की इच्छा रखते है तो भी यह दिव्य साधना अवश्य संपन्न करे।निश्चित आपकी कामना पूर्ण हो जाएगी। विधि : साधना किसी भी शुक्रवार की रात्रि से आरम्भ करे,समय रात्रि १० बजे के बाद का हो,आपका मुख उत्तर दिशा की और हो,आपके आसन वस्त्र सफ़ेद हो।प्रातः तुलसी की जड़ निकाल कर ले आये और उसे साफ करके सुरक्षित रख ले,जड़ लाने के पहले निमंत्रण अवश्य दे।अब अपने सामने एक तुलसी का पौधा रखे और उसका सामान्य पूजन करे,दूध से बनी मिठाई का भोग लगाये और तील के तेल का दीपक लगाये। तुलसी की जड़ को अपने आसन के निचे रखे।अब स्फटिक माला से मंत्र की १०१ माला संपन्न करे।यह क्रम तीन दिन तक रखे,आखरी दिन घी में पञ्च मेवा मिलाकर यथा संभव आहुति दे।बाद में उस जड़ क

ॐ ऐं ह्लीं श्रीं आग्नेयां पातु तारिणी।।

यदि आप मंत्र साधना में और अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं तो गुरुदेव श्री योगेश्वरानंद जी द्वारा लिखित पुस्तकों का अध्ययन अवश्य कीजिये। ये पुस्तकें आप अमेज़न से खरीद सकते हैं –

त्रिरात्रेण वशं याति मृत्योः तन्नात्र संशयः। लिखित्वा प्रतिमां शत्रोः सतालेन हरिद्रया।। (२३)

The kavacam is immensely powerful and even read more effective at halting adverse weather conditions, if One particular has acquired siddhi or fructification of your kavaca mantra of śrī bagalāmukhī pratyaṅgirā. All forms of sorrow due to persons, other entities and perhaps sick-outcomes of planetary movement, may be reversed via the honest and utmost committed recitation of the kavacam.

 

ॐ ह्रीं मोहिनी मम शत्रून मोहय मोहय ॐ ह्रीं स्वाहा

पितृ चालिसा (पितर चालिसा) श्राद्ध मे या किसी भी अमावस्या को ये पितृ चालिसा का ३ या ५ पाठ...

Your translation need to certainly help them. I've read through Swamijis translation in his "pratyangira sadhana" e-book. It is nice translation but as well quick & in grandhika basha :)

सिद्ध प्रत्यंगिरा यन्त्र, सिद्ध प्रत्यंगिरा माला, प्रत्यंगिरा विग्रह, प्रत्यंगिरा रक्षासूत्र

अष्टाधिक चत्वारिंश दण्डाढया बगलामुखी। रक्षां करोतु सर्वत्र गृहेऽरण्ये सदा मम।। (५)

 

व्याप्तांगीं बगलामुखीं त्रिजगतां संस्तम्भिनीं चिन्तयेत्।।

माहेशी दक्षिणे पातु चामुण्डा राक्षसेऽवतु। कौमारी पश्चिमे पातु वायव्ये चापराजिता।। (१३)

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